
चेतना- बाल विवाह (भाग 4 ) उपन्यास
रात का खाना खाने की तैयारी हो रही थी तभी पड़ोस से ढोल बजने की आवाज आई। “मैं अभी दस मिनट में आती हूँ” कहते हुए चेतना उधर चल दी। मोखम प्रजापति की चार पोतियों की शादी होनी थी दो दिन बाद। ढोल की तेज आवाज पर घूमर, भांगड़ा और कश्मीरी नृत्य हो रहे थे। चेतना तालियाँ बजाकर आनंद लेने लगी। तभी दो-चार हमउम्र लड़के-लड़कियाँ उसे हाथ पकड़कर चौक मे ले आये।
अब नृत्य का समां बंध चुका था। तभी उसने देखा कि चारों दुल्हनों पर रुपये वारे जा रहे थे जो बमुश्किल १६-१७ की उम्र के अंदर ही थीं। उसने पास बैठी महिला से दुल्हनों की उम्र पूछी। उसका अनुमान सही था। घर लौटते हुए आंगन में ही मोखम दादा मिल गये। उसने इस बाल-विवाह को रोकने की बात की। उन्होंने बनावटी मुस्कान के साथ कहा कि ये तो बाल-विवाह बिलकुल नहीं है।
सभी लड़कियां बालिग हैं। निमंत्रण-पत्रों में वर-वधू की आयु भी लिखी गई है। घर आकर वो पापा से तर्क करने लगी। “पापा; ये लोग झूठ बोलकर बाल-विवाह कर रहे हैं आप इन्हें समझाइये नहीं तो मैं पुलिस को सूचित कर दूँगी।” पापा हताश से बोले, “कोई फायदा नहीं है बेटा; पूर्व में मेरे समझाने पर तीन-चार बच्चों के बाल-विवाह रुक गए। पर शिक्षा पूर्ण होने पर उन्हें अपनी जाति में हमउम्र मैच नहीं मिले। उन्हें बेमेल शादियाँ करनी पड़ी।
जगहंसाई भी बहुत हुई इसलिए अब मैं इन मामलों में दखल नहीं देता। तुम पुलिस बुला भी लोगी तो क्या; इन्होनें पहले से ही मिडल कक्षा की फर्जी डिग्रियां ले रखी हैं जिसमें बच्चियों को बालिग दिखाया गया है।”
चेतना ने पूरी कोशिश की पर कोई उसके समर्थन में नहीं था। उसके बुलाने पर पुलिस आई भी पर कोई ठोस आधार न होने पर उलटे पैर चली गई। सबसे छोटी दुल्हन बहुत विचलित थी। वो पढ़ना चाहती थी। वो चेतना से बात करना चाहती थी पर उसे छिपाकर रखा गया। इस घटना के बाद मोहल्ले के सब बड़े-बुजुर्ग चेतना के खिलाफ हो गये।
दल बनाकर त्रिपाठीजी के पास आये और बोले, “वकील साहब; अपने हमारा बहुत हित किया है। आपका लिहाज करके हम बिटिया से कुछ न कहेंगे पर आप भी उन्हें समझाइये कि ये दिल्ली नहीं है। वे हमारे निजी मामलों में दखल न दें।” इसके बाद दादी ने तो उसकी शादी करवाने की जिद पकड़ ली। रिश्ते भी आ रहे थे पर उसने साफ इनकार कर दिया।